छठ पूजा भारत ही नहीं वल्कि देश विदेश में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता हैं यह भारत का एक बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता हैं और यह 4 दिनो तक चलता हैं, लेकिन क्या आपको यह पता हैं की Chhath Puja Kyu Manaya Jata hain | छठ पर्व की शुरुवात कैसे हुई?
दोस्तों छठ पूजा भारत में मनाया जाता हैं लेकिन उत्तर भारत में इसकी ज्यादा रौनक दिखाई पड़ती हैं जहां बिहार और झारखंड राज्य में इसे बहुत धूम धाम से मनाया जाता हैं।
छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु, और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित हैं ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवताओं को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने के लिए अनुरोध किया जाए।
छठ पर्व से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी होती हैं, छठ पर्व को करना बहुत कठिन माना जाता हैं क्योंकि इसमें साफ सफाई का अच्छा खासा ध्यान रखा जाता हैं। इस पर्व में गलती की कोई जगह नहीं होती हैं।
इस व्रत को करने के नियम कठिन हैं जिस वजह से इसे महापर्व और महाव्रत भी कहा जाता हैं लेकिन इसके बाद भी लोग अपनी आस्था के लिए इस कठिन व्रत को बहुत उत्साह से मनाते हैं। इसलिए आज की पोस्ट में Chhath Puja Kyu Manaya Jata hain | छठ पर्व की शुरुवात कैसे हुई? यह आपको जानने के मिलेगा।
छठ माता कौन हैं?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता हैं की छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्ही को प्रसन्न करने के लिए इस पूजा को किया जाता हैं इस व्रत में सूर्य व जल की महत्ता को भी मानते हैं।
इस व्रत में सूर्य और जल को साक्षी मानकर सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या फिर किसी भी पवित्र नदी या तालाब के किनारे इस पूजा को किया जाता हैं, इस वजह से गंगा के घाट पर बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती हैं क्योंकि गंगा को बहुत पवित्र माना जाता हैं।
छठ माता को बच्चों की रक्षा करने वाली देवी भी कहा जाता हैं तथा यह भी मान्यता हैं की इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता हैं इसलिए मां अपने बच्चों की लंबी आयु का भी वरदान इसमें मांगती है।
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है।
इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं। वो बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है।
शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। इनकी प्रार्थना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिलता है। पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है।
छठ पर्व की शुरुवात कैसे हुई?
छठ पर्व की शुरुवात कैसे हुई इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। पुराण में छठ पूजा की कहानी राजा प्रियवंद को लेकर हैं कहते हैं राजा प्रियवंद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी।
इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे।
उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा।
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राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।
इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया।
पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया । मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे।
सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था।
इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।
छठ पूजा क्यों मनाया जाता हैं?
दोस्तों पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ पूजा को करने से संतान की लंबी आयु का सुख मिलता हैं तथा इसे करने से जीवन के अनेक कष्टों से भी छुटकारा मिलता हैं जिस वजह से छठ पूजा को करने की परंपरा पौराणिक काल से ही चली आ रही हैं।
सूर्य देव की बहन छठ माता हैं इसलिए लोग सूर्य को अर्ध देकर छठ मैया को प्रसन्न करते हैं ताकि उनकी मनोकामना पूरी हो सके, हालांकि इस व्रत को बहुत कठिन माना जाता हैं जिस वजह से इसे महापर्व और महाव्रत भी कहा जाता हैं।
पुराणों में मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी देवी को भी छठ माता का ही रूप माना जाता हैं। छठ माता को संतान देने वाली माता के नाम से भी जाना जाता हैं। जिस भी जोड़े को संतान प्राप्ति नहीं होती हैं वो इस व्रत को विशेष रूप से मनाते हैं।
इसके आलावा सभी लोग अपने बच्चों के सुख तथा उनकी लंबी आयु के लिए इस कठिन व्रत को बहुत धूम धाम से मनाते हैं।
छठ मैया किसकी पुत्री हैं?
षष्ठी मां यानी कि छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है।
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में माना जाता हैं जो ब्रम्हा की मानस पुत्री हैं।
छठ मैया की उत्पत्ति कैसे हुई?
दोस्तों जैसा की हमने आपको कुछ देर पहले बताया की प्रियवंद अपने पुत्र को लेकर शमशान गए की पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे और उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं।
राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
मूलतः सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में।
चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जानेवाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्घि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है।
छठ व्रत कथा?
दोस्तों छठ व्रत कथा के अनुसार प्रियवंद नाम के एक राजा थे तथा उनकी पत्नी का नाम मालिनी था, कहा जाता हैं की दोनो की कोई संतान नहीं थी इसी बात को लेकर दोनों बहुत दुखी रहते थे। इसलिए दोनो ने संतान प्राप्ति की इच्छा से एक दिन महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया।
इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गई और नौ महीनों बाद जब संतान सुख का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ।
संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं।
देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं।
यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया। राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि-विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।
छठ व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
छठ पूजा से जुड़े FAQs
दोस्तों पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ माता सूर्य देव की बहन हैं और छठ पूजा में सूर्य और जल को साक्षी मानकर सूर्य की आराधना की जाती हैं।
छठ माता को संतान प्राप्ति की देवी कहा जाता हैं तथा छठ माता बच्चों की आयु लम्बी करने का वरदान भी देती हैं इसलिए मां अपने बच्चों के सुख तथा संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में माना जाता हैं जो ब्रम्हा की मानस पुत्री हैं।
छठ पूजा करने की तारीख बुधवार 10 नवंबर 2021 को हैं, यह 4 दिनो का त्योहार होता हैं जिसमे अलग अलग दिन व्रत रखना होता हैं।
ऐसा देखा जाता है कि महिलाएं अनेक कष्ट सहकर पूरे परिवार के कल्याण की न केवल कामना करती हैं, बल्कि इसके लिए तरह-तरह के यत्न करने में पुरुषों से आगे रहती हैं। इसे महिलाओं के त्याग-तप की भावना से जोड़कर देखा जा सकता है।
छठ पूजा कोई भी कर सकता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। पर इतना जरूर है कि महिलाएं संतान की कामना से या संतान के स्वास्थ्य और उनके दीघार्यु होने के लिए यह पूजा अधिक बढ़-चढ़कर और पूरी श्रद्धा से करती हैं।
निष्कर्ष?
दोस्तों इस पोस्ट में मैने आपको बताया की Chhath Puja Kyu Manaya Jata hain | छठ पर्व की शुरुवात कैसे हुई? मुझे पूरी उम्मीद हैं आपको यह पोस्ट पढ़कर छठ पूजा के बारे में लगभग सभी तरह की जानकारी मिल गई होगी।
दोस्तों छठ पूजा उत्तर भारत के लोग बहुत धूम धाम से मनाते हैं तथा यह त्योहार बहुत पवित्र माना जाता हैं यह 4 से 5 दिनो तक चलने वाला त्योहार हैं जिसमे बिना पानी पिए व्रत रखना होता हैं तथा किसी पवित्र नदी के किनारे छठ माता की पूजा की जाती हैं।
इसमें पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्ध दिया जाता हैं ताकि सूर्य की बहन छठ माता को प्रसन्न किया जा सके। मुझे पूरी उम्मीद हैं अब Chhath Puja Kyu Manaya Jata hain | छठ पर्व की शुरुवात कैसे हुई? इसका जवाब आपको मिल गया होगा।
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